तुमसे, सुबह मेरी थी, दिन था।
तुमसे, ये किरणें थीं, सूरज था।।
तुमसे, एक खुशनुमा सबेरा था।
तुमसे, कुछ रिश्ता मेरा गहरा था।।
तुमसे, नीला आकाश, मंद हवाएँ थीं।
तुमसे, सावन की बूँदें, बादल की घटाएँ थीं।।
तुमसे, कोयल की कुहू, चिड़ियों की चहकन थी।
तुमसे, एकाकी तड़पन, इस दिल की धड़कन थी।।
तुमसे, बचपना था, शैतानियाँ थीं।
तुमसे, शरारतें थीं, नादानियाँ थीं।।
तुमसे, उमंगें थीं, दीवानगी थी।
तुमसे, तरंगें थीं, मस्तानगी थी।।
तुमसे, दिल ढलता था, सुहानी शाम आती थी।
सियाही सी रात सपनों में तेरा संदेशा लाती थी।।
मगर अब तुम न होगी...
मगर अब तुम न होगी, अब हम न होंगे।
अब यादें तो रहेंगी, बस ये लम्हें न होंगे।।
ये आँखें, जिनमें सपने थे, सूनी होंगी।
इनमें आँसू होंगे, ये पलकें भीगी होंगी।।
सुबह तो होगी, पर ये दिन मेरा न होगा।
किरणें भी आएँगी, अब सबेरा न होगा।।
बादल फिर भी छायेंगे मगर अब वो न बरसेंगे।
सावन फिर से आएगा मगर अब हम न तरसेंगे।।
कोयल गीत जाएगी, उनमें सुर नहीं होंगे।
दुःख तो होगा बहुत, मजबूर हम नहीं होंगे।।
अब न वो बचपना होगा, न हँसी होगी, न ख़ुशी होगी।
नादानियाँ अब नहीं होंगी, होंठों पर बस ख़ामोशी होगी।।
तुमसे, ये किरणें थीं, सूरज था।।
तुमसे, एक खुशनुमा सबेरा था।
तुमसे, कुछ रिश्ता मेरा गहरा था।।
तुमसे, नीला आकाश, मंद हवाएँ थीं।
तुमसे, सावन की बूँदें, बादल की घटाएँ थीं।।
तुमसे, कोयल की कुहू, चिड़ियों की चहकन थी।
तुमसे, एकाकी तड़पन, इस दिल की धड़कन थी।।
तुमसे, बचपना था, शैतानियाँ थीं।
तुमसे, शरारतें थीं, नादानियाँ थीं।।
तुमसे, उमंगें थीं, दीवानगी थी।
तुमसे, तरंगें थीं, मस्तानगी थी।।
तुमसे, दिल ढलता था, सुहानी शाम आती थी।
सियाही सी रात सपनों में तेरा संदेशा लाती थी।।
मगर अब तुम न होगी...
मगर अब तुम न होगी, अब हम न होंगे।
अब यादें तो रहेंगी, बस ये लम्हें न होंगे।।
ये आँखें, जिनमें सपने थे, सूनी होंगी।
इनमें आँसू होंगे, ये पलकें भीगी होंगी।।
सुबह तो होगी, पर ये दिन मेरा न होगा।
किरणें भी आएँगी, अब सबेरा न होगा।।
बादल फिर भी छायेंगे मगर अब वो न बरसेंगे।
सावन फिर से आएगा मगर अब हम न तरसेंगे।।
कोयल गीत जाएगी, उनमें सुर नहीं होंगे।
दुःख तो होगा बहुत, मजबूर हम नहीं होंगे।।
अब न वो बचपना होगा, न हँसी होगी, न ख़ुशी होगी।
नादानियाँ अब नहीं होंगी, होंठों पर बस ख़ामोशी होगी।।