रविवार, 21 सितंबर 2014

मगर अब तुम न होगी...

तुमसे, सुबह मेरी थी, दिन था।
तुमसे, ये किरणें थीं, सूरज था।।

तुमसे, एक खुशनुमा सबेरा था।
तुमसे, कुछ रिश्ता मेरा गहरा था।।

तुमसे, नीला आकाश, मंद हवाएँ थीं।
तुमसे, सावन की बूँदें, बादल की घटाएँ थीं।।

तुमसे, कोयल की कुहू, चिड़ियों की चहकन थी।
तुमसे, एकाकी तड़पन, इस दिल की धड़कन थी।।

तुमसे, बचपना था, शैतानियाँ थीं।
तुमसे, शरारतें थीं, नादानियाँ थीं।।

तुमसे, उमंगें थीं, दीवानगी थी।
तुमसे, तरंगें थीं, मस्तानगी थी।।

तुमसे, दिल ढलता था, सुहानी शाम आती थी।
सियाही सी रात सपनों में तेरा संदेशा लाती थी।।

मगर अब तुम न होगी...
मगर अब तुम न होगी, अब हम न होंगे।
अब यादें तो रहेंगी, बस ये लम्हें न होंगे।।

ये आँखें, जिनमें सपने थे, सूनी होंगी।
इनमें आँसू होंगे, ये पलकें भीगी होंगी।।

सुबह तो होगी, पर ये दिन मेरा न होगा।
किरणें भी आएँगी, अब सबेरा न होगा।।

बादल फिर भी छायेंगे मगर अब वो न बरसेंगे।
सावन फिर से आएगा मगर अब हम न तरसेंगे।।

कोयल गीत जाएगी, उनमें सुर नहीं होंगे।
दुःख तो होगा बहुत, मजबूर हम नहीं होंगे।।

अब न वो बचपना होगा, न हँसी होगी, न ख़ुशी होगी।
नादानियाँ अब नहीं होंगी, होंठों पर बस ख़ामोशी होगी।।

रविवार, 7 सितंबर 2014

दिल के अफ़्साने हो तुम...

दिल के अफ़्साने हो तुम
गीतों के तराने हो तुम
मेरे सारे सपने हो तुम
तुम मेरे अपने हो तुम।।

तुम आशा हो विश्वास हो तुम
तुम मेरी तड़पन प्यास हो तुम
तुम मेरा जीवन स्वाँस हो तुम
इस बंजारे का आकाश हो तुम।।

तुम मुझ बादल का सावन हो
तुम मेरी सीता पावन हो
मेरे होंठों की मुस्कान हो तुम
मेरा सारा जहाँ अभिमान हो तुम।।

सर्वत्र प्रेम बरसाती तुम
सब रंग गुलाल उड़ाती तुम
ये सावन भादों लातीं तुम
और फागुन में मुस्काती तुम।।

तुम चपल चंचला माया हो
तुम मेरी स्वप्निल साया हो
तुम प्रेम अनादि अनंत लिए
जैसे सागर को समाया हो।।

तुम जैसे शीतल चन्दन हो
तुम मेरी पूजा वंदन हो
तुम अभिवादन अभिनन्दन हो
तुम अमृत सागर मंथन हो।।

तुम करुणा ममता की मूरत
तुम इक भोली प्यारी सूरत
तुम मेरा तीरथ कीरत हो
तुम मेरी अपनी सीरत हो।।

तुम गीत मेरे संगीत मेरे
तुम प्रीत मेरे मनमीत मेरे
तुम दीन मेरे तुम धर्म मेरे
इस जीवन का हो मर्म मेरे।।

तुम कोमल कंचन कोरी हो
उन्मुक्त प्रेम की डोरी हो
तुम जैसे चाँद चकोरी हो
तुम मेरी राधा गोरी हो...।।

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

प्रेम को समर्पित.....

प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग......
तुम्हारी कल्पना रुचिकर इतनी जैसे नभ में विहंग,
प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग......
प्रकृति का है रूप नया और मन में है चंचलता,
विह्वल हूँ देख; तुम्हारी सादगी-सम सुन्दरता,
अब जाना दूर तुमसे ; मुझमें ऐसी नहीं उमंग,
प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग......
मेरे हृदय में बसे हो तुम; मेरे ख्वाबों में हो तुम,
मेरी आशाएँ हैं तुमसे ; मेरी खुशियों में हो तुम,
सुखद आनंद की अनुभूति; हर पल तुम्हारे संग,
प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग.......
अश्रु की मालाएँ हैं ; पलकों के हैं आसन,
वीरान हुए उद्यान हैं उजड़े हैं सारे चमन,
सागर में किञ्चित नहीं जितनी हृदय में है तरंग,
प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग.......
यह संसार अलौकिक है ; इसमें कोई संदेह नहीं,
तुम्हारा रूप लावण्यमय अन्य किसी का है नहीं,
तुम बिन लगे जैसे कोई भी न हो संग,
प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग.......
तुम्हारी कल्पना रुचिकर इतनी जैसे नभ में विहंग,
प्रिय! तुम मेरे जीवन का हो एक अभिन्न अंग.......

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

दिल की बातें...

कर लो मुझसे बातें दिल की
कह दो अपनी सुन लो मेरी.....
क्या पता कल हो न पाये,
मिलने को हम तरस न जाएँ,
कहीं अधूरी न रह जाये
ख्वाहिशें अपनी कर लो पूरी,
कर लो मुझसे बातें दिल की;
कह दो अपनी सुन लो मेरी.....
आँखों को ज़ुबाँ बना
इशारों से समझा दो,
या बोल दो खुलके
बंधन सब हटा दो,
पा जाएँ खुशियाँ
या रह जाएँ गम,
कर दो फैसला कहीं
तन्हा न हो जाएँ हम,
आरज़ू दिल की तमन्ना अपनी,
कर लो मुझसे बातें दिल की;
कह दो अपनी सुन लो मेरी......

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

आ जा रे...

सुबह सवेरा किरणें लाये,
रात चांदनी प्रीत बढ़ाये,
चूड़ी खनके तुझे बुलाये,
आ जा रे आ जा रे.......
आहट जो धड़कन की आये,
आहें जो सांसो को भायें,
पैरों की पायल गीत सुनाये,
आ जा रे आ जा रे........
सूरत भोली मूरत प्यारी,
केशु अमावस की अंधियारी,
नैन जो तेरा दरश कराये,
आ जा रे आ जा रे........
पलकों की घटा जो छाये.
अश्कों की बरसात कराये,
दिल कैसा संगीत सुनाये,
आ जा रे आ जा रे........